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‘रामात् नास्ति श्रेष्ठ:’ ‘शक्तिक्रीडा जगत सर्वम्’ - संस्कृत भाषा का आध्यात्मिक संबंध

(सूचना: विचारों का तंतुजाल जटिल हो सकता है, किंतु इसे सरल शब्दों में परिवर्तित करने की कोई मंशा नहीं है ☺️।)

‘रामात् नास्ति श्रेष्ठ:’ तथा ‘शक्तिक्रीडा जगत सर्वम्’ इन दोनों वाक्यों का संस्कृत भाषा के सन्दर्भ मे एक विशेष आध्यात्मिक संबंध है।

संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है, ये तो हमने कई बार सुना है। इसका बंधारण (व्याकरण) विश्व में सर्वश्रेष्ठ है, जिस कारण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में इसका जड़ों के स्तर पर प्रयोग हो रहा है। किन्तु इस वैज्ञानिकता के साथ-साथ संस्कृत के बंधारण में आध्यात्म और सृष्टि की रचना के चक्र का जो रहस्य बुना है, वह जैसे प्रकट हुआ मन में! उसे ही मैंने शब्द देने का प्रयास किया है।

संस्कृत की वैज्ञानिकता क्या है ?

पहला तो यह शब्दों या मंत्र के रूप में, ध्वनि तरंगों के द्वारा हमारे स्थूल शरीर में जैविक और रासायनिक प्रतिक्रिया उत्पन्न करती है, जो हमारे स्वास्थ्य से और मस्तिष्क की गतिविधि से सीधा सीधा संबंध रखती है। और दूसरा इस के पदों के अर्थ को समझकर उससे, मन में प्रस्तुत-परंतु-प्रायः-सुषुप्त अध्यात्म का विकास भी होता है। संस्कृत मनुष्य को अध्यात्म की ओर उसके जीवन चक्र के लक्ष्य की ओर ले जाती है।

संस्कृत की वैज्ञानिकता में अध्यात्म कैसे बुना है?

“रामात् नास्ति श्रेष्ठ:” इस वाक्य का प्रयोग तीन विषयों में उपमा-संकेत के लिए किया जाता है :

१) मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र और उनके कुशल राजतंत्र (रामराज्य) के कारण

२) आर्युवेद के अध्ययन मे

३) संस्कृत भाषा के अध्ययन , पाठन में

तकनीकी विश्लेषण:

संस्कृत में राम शब्द का परिचय “अकारांत पुल्लिंग राम शब्द” इस प्रकार से दिया जाता है। राम शब्द रम् धातु से बना है। रम् धातु का अर्थ है क्रीडा करना, उसमें घञ् प्रत्यय, उपधावृद्धि होकर- राम- यह कृदंत शब्द सिद्ध हुआ और कृदंत होने से प्रातिपदिक हुआ, अर्थात् अर्थवान हुआ, सार्थक हुआ। सुप् और तिङ् प्रत्याहार में आने वाले प्रत्ययों को विभक्ति कहते हैं। प्रातिपदिक (सार्थक शब्द) को विभक्ति की प्राप्ति होती है, इन दोनों के संयोग से जो परिणाम प्राप्त हुआ उसे पद कहते हैं।

विभक्तियाँ सात होती हैं जिन्हें हम क्रमशः प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी षष्ठी सप्तमी (तथा संबोधन) कहते हैं। इनके नाम क्रमशः कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, संबंध अधिकरण तथा संबोधन हैं।

आध्यात्मिक विश्लेषण:

राम का अर्थ है “रमन्ते योगिनोऽस्मिन्” – योगी जिसने रमण करते हैं, यानि परम तत्व या ईश्वर। ‘शक्ति क्रीडा जगत् सर्वम्’ का अर्थ है यह सारा जगत शक्ति का खेल है अर्थात् माया चक्र है जिसमें सब जीव क्रीडा का भाग हैं। राम प्रातिपदिक अर्थात् सार्थक है, परम तत्व है जिसमें योगी रमण करते हैं। सार्थक को (परम तत्व को) शक्ति से विभक्ति की प्राप्ति हुई। विभक्ति अर्थात विभाजन। यह विभाजन शक्ति के द्वारा हुआ, शक्ति अर्थात् वह क्रीडा(माया) जिसमें योगी रमण करते हैं। तो राम शक्ति (प्रकृति) से विभक्त होकर सात रूपों में सिद्ध हैं, जो सात विभक्तियाँ हैं। राम ही कर्ता हैं; राम ही कर्म हैं; राम ही करण हैं साधन हैं, उनके ही द्वारा सब कुछ है; राम संप्रदान हैं अर्थात् सब कुछ राम के लिए है; राम से अलग होकर, अपादान कर; राम के ही सम्बन्ध से सब पुनः राम के अधिकरण में, उसके अधिकार में आ जाते हैं और शक्ति क्रीडा का चक्र पूर्ण होता है। जिस नाम को एक बार (एक वचन), एक बार और (द्विवचन), बहुत बार (बहुवचन) पुकारने की इच्छा होती है, संबोधन की विवक्षा होती है, वह है = राम!

सार्थक प्रातिपदिक राम की अर्थात् परम अणु की, शक्ति से कई अणुओं में विभक्ति हुई, किंतु परमाणु फिर भी पूर्ण ही रहा।

पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।

यह, वह सब पूर्ण है, पूर्ण से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है। पूर्ण में से पूर्ण लेकर भी पूर्ण ही शेष रहता है।

और अंत में, रामरक्षा स्तोत्र के इस छंद में राम के सारे रूप (विभक्तियाँ) एक साथ उपस्थित हैं। विद्यार्थियों, विशेषकर बाल विद्यार्थियों के लिये एक साथ सरलता से सारी विभक्तियाँ स्मरण करने के लिये ये श्लोक स्मरण कर लेना सर्वोत्तम युक्ति है :

“रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर॥”

यात्रा जारी है….

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