सूर्य ग्रहण एक खगोलीय घटना है। सूर्य ग्रहण का भारतीय इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। वेदों (ऋग्वेद) में अत्रि मुनि ने सूर्य ग्रहण पर सबसे पहले बात करी । अत्रि और स्वरभानु की एक कथा भी आती है। उस कथा में सहसा सूर्य का आच्छादन हो जाने से, अंधेरा हो जाता है और स्वरभानु उसे दैवी प्रकोप बताता है और ये जिसका कारण वह अत्रि मुनि को बताता है, तब अत्रि उसकी गिनती करके बताते हैं कि ये कोई दैवी प्रकोप नहीं है अपितु एक खगोलीय घटना (Cosmic event) है। अत्रि मुनि ने बताया कि ऐसी ही खगोलीय घटना इस दिन इस समय पुनः होगी और बताए गये दिन समय पर वह हुई। तब से ग्रहण का गणित अस्तित्व में आया। या ग्रहण के गणित की खोज की गई, ऐसा हम बता सकते हैं। ये कई सहस्र वर्ष पुरानी घटना है। सबसे पहले भारत ने ये जाना की ग्रहों की गति की गिनती करके खगोलीय घटनाओं को बताया जा सकता है। पहले से यह पता चल सकता है कि कब सूर्य का ग्रहण होगा।
सूर्य ग्रहण में क्या- क्या घटनाएँ होती हैं, सूर्य ग्रहण के समय क्या-क्या परिवर्तन होते है और क्या-क्या ध्यान रखना चाहिए ?
सूर्य का ग्रहण होना अर्थात सूर्य का आच्छादित हो जाना, ढक जाना। सूर्य जब आच्छादित हो जाता है तो उसकी किरणें पृथ्वी पर भली प्रकार से नहीं आती हैं, जिस प्रकार आनी चाहिएँ। उस अवस्था को हम ग्रहण कहते हैं। ध्यातव्य: सूर्य ग्रहण अमावस्या को ही होता है और चन्द्र ग्रहण पूर्णिमा को, अन्य किसी तिथि को नहीं होता है। यह पूर्ण तथा सहस्त्रो वर्ष प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान है। कब ग्रहण होगा, कब छूटेगा ये पूरी वैज्ञानिक व गणितीय गणना उपलब्ध है। ये अन्धश्रद्धा न होकर प्रामाणिक हैं। सूर्य ग्रहण वर्ष में कम से कम एक बार या अधिक से अधिक सात बार हो सकता है।
विचारणीयः स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से पूछें ,जो ग्रहण या eclipse के बारे में पढ चुके हैं, कि उन्हें ये बात पता है या याद है तो अधिकतर का उत्तर “ना ” में होगा। भारतीय शिक्षा पद्धति से विधार्थियों को जब खगोल पढ़ाया जाता है तो यह सब विस्तार से समझाया जाता है।
ज्योतिष तथा खगोल शास्त्र के ग्रन्थों में इसका वितरित वर्णन है। वाराहमिहिर रचित बृहत्संहिता में राहुचाराध्याय ग्रहण के कई पक्षों को बताता है। उसी प्रकार अथर्ववेद संहिता विभिन्न कीटाणुओं जन्तुओं के उत्पत्ति संक्रमण आदि का वर्णन करती हैं। धर्मशास्त्र में ग्रहण के समय पालन करने के नियम-विधि का वर्णन है।सूर्य ग्रहण कभी कभी दीपावली के दिन या किसी विशेष दिन की अमावस्या पर होता है तो उसके विशेष प्रभाव होते हैं। सूर्य ग्रहण की एक अवधि होती है ( duration) । वह सारे समय भारत में दिखे ये आवश्यक नहीं। जब वो भारत में दिखता है तब ये नियम पालन करने होते हैं। जब किसी अन्य स्थान पर है तो पालन करने की आवश्यकता नहीं होती है।
सूर्य ग्रहण की तीन अवस्थाएँ होती हैं वेध, स्पर्श, मोक्ष ।
01 | वेध सूर्य ग्रहण के समय से 12 घंटे पहले वेध काल आरंभ हो जाता है। इसी को हम स्थानीय भाषा में ग्रहण का सूतक लगना कहते हैं। चन्द्र ग्रहण पर यह छह घण्टे पहले आरंभ हो जाता है। बारह घण्टे पहले से उसका प्रभाव आरम्भ होता है इसलिए जो स्वस्थ रहना चाहता है, मानने को इच्छुक है उसके लिए वेध काल में ये नियम बताए हैं :
- भोजन करना बन्द कर दें
- पानी वाली वस्तुएँ लेना बन्द कर दें।
- कुछ न खाएँ तो उत्तम है यदि कुछ खाना भी पडे तो फल खाएँ पानी वाली चीजें न खाएँ ये ग्रहण के नियमों में बताया है।
- मन्त्र का जप करें।
किसी भी मन्त्र जाप का एक सहस्त्र गुणा प्रभाव होता है, अनन्त गुणा फल मिलता है ऐसा भी बताया है । कोई भी मन्त्र का जाप कर सकते है। विशेष जो सिद्धियाँ है या विशेष निमित्त हेतु के लिए किया जाता है उसके लिए अलग अलग मन्त्र बताए गये हैं। विद्वान या पण्डित से उसकी जानकारी ली जा सकती है।
- मल मूत्र का त्याग कर के निवृत्त रहें।
- वेध आरम्भ होने के बाद बाहर न निकलें ।
ग्रहण के समय शरीर पर बहुत सारे परिवर्तन होते हैं। उस समय शरीर को आराम दें तो उत्तम होता है। पानी न पिएँ, पीना भी पड़े तो उबाल के ठण्डा किया हुआ पानी पिएँ वो भी बहुत थोड़ी मात्रा में । खाने पीने के सब नियम साधारण नियम हैं। ये नियम बालकों के लिए,गर्भवती महिलाओं के लिए, वृद्धों के लिए या रोगियों के लिए नहीं हैं । ये सब यथेष्ट खा पी सकते हैं क्योंकि न खाने पर दुर्बलता आ सकती है या रोग हो सकते हैं, अतः ये सब नियम के अपवाद है।
पृथ्वी की भौगोलिक स्थितिः सूर्य ग्रहण के समय पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है। सूर्य का प्रभाव पृथ्वी पर कम होता है इसलिए पृथ्वी का गुरुत्व कम हो जाता है। गुरुत्वाकर्षण कम हो जाने पर अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीव जन्तु उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे हम रात्रि में देखते हैं कि कई जीव जन्तु उत्पन्न या सक्रिय हो जाते हैं। सूर्य के प्रकाश से वह चले जाते है इसी लिए हम देखते हैं कि वर्षा ऋतु में जब सूर्य मेघों से आच्छादित रहता है, ढका रहता है तब अनेक प्रकार के जीव जन्तु कीट विषाणु हो जाते हैं। वही घटना होती है जब सूर्य विशेष रूप से आच्छादित होता है अर्थात् ग्रहण के समय! तब बहुत प्रकार के न दिखने वाले जन्तु उत्पन्न होते हैं। वो उत्पन्न होकर भोज्य पदार्थो पर खाने पीने की वस्तुओं पर प्रभाव डालते हैं विशेष रूप से पानी पर । जो भी पानी वाले भोज्य पदार्थ है, जो हम अन्न पकाकर खाते हैं या जो processed food है , उन सब पर उसका विशेष असर होता है। भोजन यदि बचा है तो या तो किसी को खिला दें या डाल दें अथवा जाने दें। ग्रहण के बाद नया पकाकर खाएं। घर में पानी है, दूध आदि हैं तो उसने दर्भ, तुलसी इत्यादि जिन वनस्पतियोंमें anti- bacterial गुण हैं उन्हें डाल कर रखें। ग्रहण में विशेष रूप से पानी संक्रमित होता है। कोरोना ने हम सब को भली भाँति बता दिया है कि बाल से भी हजार गुना सूक्ष्म जीव कैसे घातक या विनाशकारी हो सकता है। हमारे ऋषि-मुनियो ने सहस्रों वर्षो पहले से बताया है कि इस काल में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण कम हो जाने से घातक जीव-जन्तु उत्पन्न होते हैं। इसलिए सभी पकी हुई खाद्य सामग्री वेध लगने से ही निकाल दें।
02 | स्पर्श (ग्रहण का समय): यह मुख्य काल है। इस समय:
- भोजन न करें
- पानी न पियें
बाहर (सूर्य प्रकाश में) न निकले। घूमें नहीं
- स्नान कर शरीर को स्वच्छ रखें
- मन्त्र जप, ध्यान करें
इस समय आच्छादित सूर्य होता है। इस समय इसका खगोलीय प्रभाव हम पर बहुत अधिक होता है तो कम से कम उस समय बाहर न निकलें।
03 | मोक्ष : सूर्य ग्रहण का समय बीतने पर अवस्था आती है मोक्ष की! अर्थात् ग्रहण के समाप्त हो जाने के बाद का समय। इस अवस्था में:
- स्नान करें
- दान करें
- आनन्द करें
मोक्ष समय आनन्द क्यों होता है? जब-जब पृथ्वी पर विनाश हुआ, प्रलय आयी उस समय ऐसी ही खगोलीय घटनाएँ हुईं।तो जब जब पृथ्वी पर बड़ी प्रलय की अवस्था आयी तब तब पृथ्वी से गुरुत्व कम हो जाता है (भारतीय दर्शन की दृष्टि से) । सूर्य ग्रहण के समय ऐसी ही विनाशकारी घटनाओं की प्रलय की संभावना रहती है।इसलिए यदि हम घूमते फिरते हैं तो हमारे मस्तिष्क में राजस विचार होते हैं। जब हम ध्यान मन्त्रजप इत्यादि करते हैं तो हमारे विचार सात्विक होते हैं। यदि ऐसे समय संभावना भी मान लें कि प्रलय हो जाए तो – ” यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्। तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्गावभावितः॥” ऐसा गीता में बताया है कि अंत समय में जैसे भाव में व्यक्ति जाता है उसी समय का भाव का अगला जन्म हमको मिलता है। तो उत्तम भाव में रहने का, जप मन्त्र करने का इसलिए विधान किया गया है। यदि प्रलय हो जाए तो हम अच्छे भाव में जाएँ।अब जब मोक्ष काल आता है तो प्रलय या विनाशकारी घटना की संभावना समाप्त हो जाती है ग्रहण मोक्ष हो जाने पर पृथ्वी बहुत बड़ी आपति से छूट जाती है। पृथ्वी को हम माता मानते हैं। पृथ्वी बड़ी आपत्ति से बच गई इसलिए आनन्द मनाने का, दान करने का, उल्लास करने का विधान है। मोक्ष होने के बाद नया पानी भरते है, भोजन पका कर खाते हैं । यदि मोक्ष रात्रि में होता है तो यह सब कार्य अगले दिन प्रातः किया जाता है।
ये सब वैज्ञानिक , खगोलीय तथा स्वास्थ्य-आयुर्वेद से सम्बन्धित तर्क है ग्रहण के पीछे ! बताने का उद्देश्य – ग्रहण की तीनों अवस्थाओं के समय इन नियमों का, दिए विधानों का पालन करें,ध्यान आदि करें। औषधि ले सकते हैं; पानी वाली वस्तुएँ न लें, बाहर की खाने की वस्तुएँ न लें, अन्य कोई विशेष आहार न लें, आवश्यक हो तो फलाहार ले ; गर्भवती, बालक, वृद्ध अथवा रोगी यथेष्ट आहार ले सकते हैं।
ध्यान मन्त्र जप आदि का कई गुना प्रभाव भी गुरुत्वाकर्षण से संबंधित ऊर्जा विज्ञान के कारण है। स्वरभानु नाम रूपक पर भी मनन करेंगे तो ध्वनि तरंगों तथा electromagnetic waves के गुरुत्वाकर्षण से संबंध का विज्ञान उद्घाटित होगा। कदाचित् मन्त्र साधना का ग्रहण के समय सहस्र गुना अधिक प्रभाव का कारण भी उद्घाटित हो जाए। 🙂
मन्त्र प्रभाव का विस्तृत विश्लेषण किसी अन्य अवसर पर प्रस्तुत करेंगे।
(ऊपर प्रस्तुत विवरण मेहुलभाई आचार्य जी से प्राप्त है )
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
ॐ
यात्रा जारी है..