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मन ही सार है..
मनुष्य तत्व के अंतर्गत ‘मन’ ही सार वस्तु है। इसी औज़ार के सहारे वह छोटे बड़े कार्यों का सम्पादन करता है, पाप-पुण्य, उन्नति-अवनति, सफलता-असफलता, स्वर्ग-नरक की रचना करता है। जिस औज़ार के ऊपर सारा सुख दुख निर्भर है, उसका ठीक प्रकार से प्रयोग करना हर एक व्यक्ति को आना चाहिए। परंतु कितने लोग हैं जो…

पंचकोष विज्ञान और पंचकोष आधारित विकास
मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य क्या है ? जीवन की सार्थकता कहाँ पर है ? विकास का परमोच्च शिखर क्या है ? तृप्ति और आनंद की प्राप्ति किस बिन्दु पर है? इन सब प्रश्नों के जवाब तब मिलते हैं इसकी अनुभूति तब होती है जब हम पंचकोश को जानते हैं। पंचकोश का ज्ञान बहुत ही…


भगवद्गीता कैसे पढ़ें
आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति इतना भाग्यशाली नहीं कि उसे गुरू का सानिध्य या उनके द्वारा ज्ञानप्राप्ति हो । ऐसे में,गुरु के अभाव में यदि कोई भगवद्गीता पढ़ना चाहता है तो वो कैसे पढ़े? यदि स्वाध्याय भी कर रहे हैं तो किस विधि और क्रम से करें तो वह प्रभावी हो और पूर्ण हो…

सूर्य ग्रहण – खगोल और आयुर्वेद की दृष्टि से
सूर्य ग्रहण में क्या- क्या घटनाएँ होती हैं, सूर्य ग्रहण के समय क्या-क्या परिवर्तन होते है और क्या-क्या ध्यान रखना चाहिए ?

वरदराज पेरूमाल कोविल मंदिर, काँचीपुरम, तमिलनाडु
वरदराज पेरूमाल कोविल दिव्य देशम में से एक है, जो विष्णु के वह 108 मंदिर हैं जहाँ 12 आलवार संतों ने तीर्थ करा था और विष्णु स्तुति गायी थीं। यह मंदिर कुछ 1100 वर्ष पुराना है। इसे प्रसिद्ध चोल राजा राज राजा प्रथम ने बनवाया था। बाद के समय में चोल राजाओं कुलोत्तुंग प्रथम और…

वर्षा ऋतु में आहार-विहार
जो व्यक्ति ऋतुओं के अनुसार आहार और व्यवहार में परिवर्तन के आदी होने के बारे में जानता है, ऐसी आदतों का समय पर अभ्यास करता है, उसका बल और ऊर्जा-आभा बढ़ जाती है, और वह एक स्वस्थ, लंबा जीवन जीता है।

‘रामात् नास्ति श्रेष्ठ:’ ‘शक्तिक्रीडा जगत सर्वम्’ – संस्कृत भाषा का आध्यात्मिक संबंध
कल की राम मंदिर की सुंदर घटना के समय जो लेख मैं लिख रही थी, वह वैसे तो अपने लिए था, “नोट्स टू सेल्फ” की तरह किंतु मंदिर के अनुभव के बाद लगा कि सबसे साझा करूं। क्योंकि जो उन अम्मा ने अंत में कहा, एक तरह से वही तो विश्लेषण के रूप में मैं…

मास्टरस्ट्रोक ! पर किसका..?
सावधान ! कृपया पहचानें कि किसका मास्टरस्ट्रोक आज सोशल मीडिया पर बड़ी अच्छी तरह चल रहा है। मुँह नीचे करके तितर बितर हो जाएँ या एकजुट खड़े रहें?

राष्ट्रवादी उपभोक्ता बनेंगे ?
राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिये अपने हिस्से का योगदान देने में समर्थ होना चाहेंगे या असमर्थ रहना चाहेंगे ?
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