प्रथम गुरुओं को नमस्कार

आज गुरु पूर्णिमा है। गुरु पूर्णिमा का दिन अपने गुरुओं को प्रणाम करने, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व निष्ठा व्यक्त करने के लिए समर्पित है।

अंधकार को मिटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाला – गुरु!ईश्वर को प्राप्त करने का, ज्ञान को प्राप्त करने का मार्ग केवल गुरु प्रशस्त करता है। हमें ईश्वर के, ज्ञान प्राप्ति के योग्य बनाता है। गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं, ये हम सब जानते हैं और अधिकतर मानते भी हैं। गुरु-शिष्य परंपरा को नियत करने वाले भारतवर्ष के वासी तो जानते ही होंगे। मैं अपने आपको बहुत सौभाग्यशाली मानती हूँ क्योंकि कई रूपों में, विविध परिस्थितियों में, मेरे लिए आवश्यक गुरु को ईश्वर ने सदैव मुझसे मिलाया है।

मेरे प्रथम गुरु मेरे माता- पिता हैं। हम सभी के होते हैं। इस संसार में जन्म लेने के बाद पहला सभी कुछ इन्हीं से सीखते हैं। प्रथम शब्द, विचार, विद्या, आहार, संस्कार, सभी कुछ इनसे ही मिलता है। माता-पिता रूपी गुरुओं को मेरा साष्टांग प्रणाम !

गुरु के इस रूप से परे गुरुओं के कई अन्य रूप हैं – मानव रूपी ज्ञानी गुरु जो आपको शिष्य स्वीकार करे; ‘जीवन में प्राप्त हुआ अनुभव’ तथा ‘ईश्वरीय शक्ति की अनुभूति’, जो अंततः आपको उसी ईश्वर के ओर ले जाती है – ये सभी गुरु हैं।

(इस वर्ष) आज का दिन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज ही के दिन, माता पिता मुझे अपनी संतान के रूप में इस संसार में लाए थे। उनकी इस कृपा के लिए उनका धन्यवाद! इमेरजेंसी के काल में, बीच दिल्ली में, कुछ कठिन परिस्थितियों में जन्म लेने वाली इस बालिका को एक सक्षम व विचारशील नारी में परिवर्तित करने के लिए उनकी व सभी गुरुओं की ऋणी हूँ।

इसी अवसर पर कुछ स्मृतियाँ पिरो कर आत्ममुग्ध भी हो रही हूँ। सबको नमस्कार!

स्वयं

मंत्रराजमिदं देवि गुरुरित्यक्षरद्वयम् |स्मृतिवेदपुराणानां सारमेव न संशयः ||

गुरूगीता

हे देवी ! गुरु यह दो अक्षरवाला मंत्र सब मंत्रों में राजा है, श्रेष्ठ है | स्मृतियाँ, वेद और पुराणों का वह सार ही है, इसमेंसंशय नहीं है |

यात्रा जारी है…..

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