मुराहू पण्डित का गंगा स्नान

Home [gtranslate] मुराहू पण्डित का गंगा स्नान Anshu Dubey June 20, 2021 No Comments अभी कुछ दिन पहले @GYANDUTT ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने मुराहू पण्डित से एक लघु भेंट का ट्वीट किया। रोचक लगा! पाण्डेय जी से निवेदन किया कि उनकी जीवन व दिनचर्या की कुछ और जानकारी बटोरें। आदरणीय पाण्डेय जी ने ऐसा शीघ्र किया। उन्हें बहुत धन्यवाद! उन्होंने podcast और blog दोनों में उनसे दीर्घ जीवन के सूत्रों पर हुई चर्चा को सबसे साझा किया। https://gyandutt.com/2021/06/18/murahu-pandit-and-longevity/  ये कौतूहल क्यों जागा? मैं प्रायः आयुर्वेद भारतीय शास्त्रीय जीवन, ज्ञान व दृष्टिकोण के बारे में ट्वीट करती हूँ। वो सब, जो अपने परिवर्तित जीवन मैं गुरु सानिध्य में ज्ञान पाकर, अनुभव से और प्रत्यक्ष प्रमाण से जी रही हूँ और साझा करती हूँ, उस पर, शायद उसे एक अच्छी ट्वीट/quote आदि से अधिक कुछ न समझ कर, पढ़ने/सुनने वाले विश्वास नहीं करते। और करते भी हों तो उसमें प्रस्तुत शास्त्रीय ज्ञान को अपने जीवन में उतारते हों, ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। It is just good reading material ! आत्ममुग्धता के इस सामाजिक काल में, कोई निरपेक्ष होकर या तटस्थ होकर, गुरु प्राप्त व मनन किया ज्ञान, शिक्षा या जानकारी साझा करे तो उस पर विश्वास कम होता है। मुझे तो अहंकारी, opinionated, higher mortal आदि की उपाधियाँ भी मिलती रहती हैं।  तो मुराहू उपाध्याय जी के उस संक्षित उल्लेख से भी मुझे समझ आ गया कि ये पथ्यापथ्य व आहार-विहार के सरल सिद्धातों का पालन करने वाले शुद्ध भारतीय हैं जिन तक आधुनिकता के साधनों और जीवन के नाम पर प्रचलित आलस्य, दूषण और वैचारिक भ्रष्टाचार नहीं पहुँचा है। मुराहू जी की जीवनचर्या से प्रतिचित्रण (map) कर यहाँ ये बताने का प्रयास है कि जो कुछ हम भारतीय ग्रंथों-शास्त्रों में पढ़ते हैं वह पूर्णतया प्रायोगिक है, समकालीन-अद्यतन है और उसे अपने जीवन में उतारकर कैसे व्यक्ति सुखी और स्वस्थ रह सकता है, वृद्धावस्था में भी! आधुनिक अध्ययन की तरह कुछ भी केवल जानकारी के लिए शास्त्रादि में नहीं बताया जाता है, उसे जीवन में उतारकर सीधे सीधे उससे स्वास्थ्य और आयु लाभ लिया जाता है। तो प्रस्तुत है मुराहू उपाध्याय का शास्त्रीय चित्रण: अपनी वाणी से ही पुराहू जी बताते हैं की वह – 23 साल से रिटायर्ड हैं, सात विषय से M.A.हैं, राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित हैं, DM की बैठक में बैठते हैं और आयुर्वेदाचार्य, योगाचार्य हैं। उनके आधुनिक शिक्षा प्रणाली से प्राप्त प्रमाणपत्र तो आपको मिलेंगे, परंतु उनके आयुर्वेदाचार्य होने के नहीं। क्योंकि, उन्होंने आयुष मंत्रालय के बहुत ही उथले BAMS से नहीं अपितु किसी योग्य वैद्य अथवा गुरु से यह शिक्षा ली है, ऐसा उनके व्यक्तित्व, ज्ञान और शब्दों से प्रतीत होता है। दुःखं समग्रं आयातं अविज्ञाने द्वयाश्रये। सुखं समग्रं विज्ञाने विमले च प्रतिष्ठितम्।। (भाव प्रकाश) इसका अर्थ है – सारे दुख का कारण अवैज्ञानिकता का आश्रय है और सभी सुखों का कारण है विमल विज्ञान में प्रतिष्ठा।  मुराहू पंडित का विमल विज्ञान में अपने विश्वास को प्रतिष्ठित करने का कितना सुखी परिणाम है। उनको, जो 87 वर्ष की आयु में भी 50 वालों को पानी पिला दें। वैसे भावमिश्र लिखित भाव प्रकाश का ये श्लोक आयुर्वेद का सिद्धांत कहा जाता है। और कितने की जन, विशेषकर अलोपथी डॉक्टर, आयुर्वेद को घरेलू नुस्खे और नीम-हकीमी, आधुनिक समय में प्रयोग की अनुपस्थिति आदि कह कर अपने ही अवैज्ञानिक दृष्टिकोण का परिचय देते हैं।  मुराहू जी अपने दीर्घ जीवन का सूत्र बताते हैं – भोजन कम करना, परिश्रम, व्यायाम, नियमित दिनचर्या और तनावमुक्त जीवन जीना। प्रतिदिन प्रातः साईकल से 7 किलोमीटर दूर गंगा स्नान को जाते हैं और सात किलोमीटर लौटते हैं।  यहाँ मुराहू पण्डित आयुर्वेद के कई मुख्य/विशेष सूत्रों का क्या ही अच्छा अनुसरण करते दिखते हैं: ब्रह्मुहूर्त जागरण: ब्राह्मे मुहूर्त उत्तिष्ठेत्स्वस्थो रक्षार्थमायुष:। – ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला स्वस्थ होता है, उसकी आयु की रक्षा होती है अर्थात वह दीर्घायु होता है। गंगा स्नान: गंगाजल की महत्ता और विशेषता से अधिकतर जन परिचित हैं। एक सुभाषित इस प्रकार कहता हैं: असारे खलु संसारे सारमेतत् चतुष्टयम्। काश्यां वासः सतांसंगः गंगास्नानं शिवार्चनम्।। – असार से इस पूरे संसार का सार इन चारों में हैं – काशी में वास, सज्जन लोगों का संग, गंगा स्नान और शिव की अर्चना! और स्नान के योग्य स्थान के लिए मनुस्मृति बताती है:  नदीषु देवस्थानेषु तडागेषु सर: सु च। स्नानं समाचरेनित्यं गर्त प्रस्रवणेषु च। नदी, देवता का स्थान (तीर्थ), तालाब, सर: सु अर्थात नदी के समान जल प्रवाह, झरना, इनमें नित्य स्नान करना चाहिए।  मुराहू जी नित्य स्नान करते हैं, गंगाजल से करते हैं और नदी पर जा कर करते हैं। सभी दिनचर्या के बताए गए आदर्शों का पालन कितनी सरलता से करते हैं और नियमित हैं।  दिनचर्या ज्ञानदत्त पाण्डेय जी उन्हें अपने घर में अरहर के डंठल के बण्डल से झाड़ू लगाते देख उनकी ऊर्जा और जवानी (वस्तुतः उत्तम स्वास्थ्य) के कायल हो गए थे। अट्ठासी की उम्र में फिट – ऐसा स्वास्थ्य कौन नहीं चाहेगा? अब देखिए: समः दोष समाग्निच समधातु मलक्रिय:  प्रसन्नात्मेंद्रियमना: स्वस्थ इत्यामिधियते।। (सुश्रुत स. 15|41)  दोषों की समता (वात, पित्त और कफ,शरीर में ये तीन दोष होते हैं), समस्त तेरह अग्नियों का समान रहना (पञ्चमहाभूताग्नि + रस रक्तादि सप्त धातु अग्नि + जठराग्नि) तथा रस रक्तादि धातुओं और विण्मूत्रस्वेदादि मलों का पोषण, धारण और निर्गमन आदि क्रियाओं का समान होना एवं आत्मा, इन्द्रिय और मन की प्रसन्नता जिसमें विद्यमान हों, उसे स्वस्थ कहा जाता है।  मुराहू पण्डित गंगास्नान से लौटते समय गंगाजल का जरीकेन साईकल पर लटकाए लौटते हैं। रास्ते में जो भी मिलता है उसे गंगाजल का प्रसाद देते चलते हैं। रास्ते में कोई रोग ग्रस्त या अस्वस्थ व्यक्ति मिलता है तो उसे प्राकृतिक, सुलभ औषधि भी देते/बताते चलते हैं (podcast में उन्होंने रास्ते में एक महिला को अल्सर की औषधि देने की बात बताई) और कुछ दिन बीते हाल-चाल भी पूछते हैं कि व्यक्ति ठीक हुआ के नहीं! नित्यं हिताहार विहारसेवी समीक्ष्यकारी विषयेश्वसक्तः। दाता समः सत्यपर: क्षमावानाप्तोपसेवी च भवत्यरोगः।।    यही शास्त्रीय या आयुर्वेद वर्णित स्वस्थता मुराहू पण्डित में विद्यमान है। जो दीर्घ जीवन के सूत्र मुराहू जी ने बताए, वो आयुर्वेद के ग्रंथों में वस्तुतः स्वस्थ रहने की मैनुअल के रूप में वर्णित हैं! दिनचर्यां निशाचर्यां ऋतुचर्यां यथोदितम्। आचारान् पुरुषः स्वस्थ: सदा तिष्ठति नान्यथा।। (भाव प्र. 5|13) स्वस्थ व्यक्ति दिनचर्या रात्रिचर्या तथा ऋतुचर्या का उसी प्रकार पालन करें

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