भारतीय शास्त्रीय ग्रंथों को पढ़ने की विधि और पद्धति होती है और उसी प्रकार पढ़ाने की भी पद्धति और प्रणाली होती है। भारतीय ज्ञान परंपरा और अखंडित गुरु-शिष्य परंपरा में गुरु के मार्गदर्शन में ग्रंथ पढे जाते हैं और योग्य शिष्य को पढ़ाये जाते हैं। गुरु शिष्य के अनुकूल विधि का बोध ले कर पढ़ाता है। स्वयं अध्ययन करने से पढ़ तो सकते हैं किन्तु उसका सही अर्थ और पूर्ण सार नहीं निकाला जा सकता। गुरु के अभाव में अध्ययन में प्रवेश करना, दिन प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। परिणामस्वरूप, अपनेआप ग्रंथों के अर्थ और उनका अधूरा या दूषित निरूपण करने से आज ज्ञान की बहुत हानि हो रही है और ग्रंथों का दुष्प्रचार भी हो रहा है, विशेषकर पुराणों का। परंपरागत आचार्य द्वारा बताई गई ग्रंथ पढ़ने की शास्त्रीय और प्रभावी विधि के विभिन्न आयामों को यहाँ पाठ्यक्रमों के रूप में लाने का प्रयास है। ये केवल जिज्ञासु को अध्ययन के प्रवेश द्वार तक लाने के लिए है। सारगर्भित अध्ययन शास्त्र पारंगत गुरु के सानिध्य और मार्गदर्शन से ही पूर्ण होगा।

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