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गाय का संक्षिप्त परिचय

गाय का संक्षिप्त परिचय – पंचगव्य विज्ञान से उदृत

भारत में वर्तमान समय में मुख्य रूप से तीन प्रकार की गायें पाई जाती हैं :1. जर्सी गाय 2. दोगली गाय 3. देशी गाय

1. जर्सी गाय – जर्मन के जंगलों में एक माँसाहारी पशु था लेकिन उसके चार स्तन थे, उसकी मादा दूध देती थी। वहाँ के वैज्ञानिकों ने, उस पशु को पकड़ा और उसके अन्दर सूअर एवं भैंसा का क्रास बीज डालकर एक तीसरा नस्ल तैयार किया। उसका नाम जर्सी एनीमल रखा। उस जर्सी एनीमल के अन्दर उसके दूध और माँस दोनों की क्षमता में बेहद वृद्धि हुई । उस नस्ल को भारत में लाया गया, लेकिन उसको भारत में लाने से पहले उसका नामकरण संस्कार जर्सी गाय के रूप में किया गया

। क्योंकि यहाँ के लोग गाय के प्रति श्रद्धा रखते हैं और उसी श्रद्धा से गाय के दूध, दही, घी आदि का सेवन करते हैं। जिसके कारण भारत के लोगों ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसीलिए वह जर्सी गाय नहीं बल्कि जर्सी पशु है। जो मानव निर्मित एक विकृत प्राणी है। जिसके मूल में तीन तरह के डी. एन. ए. डिफ्रेंन्स दोष पाया जाता है।

1. हिंसक पशु का- इसीलिए जर्सी गाय का दूध पीने से मानव के अन्दर भी हिंसा का भाव उत्पन्न होने लगता है।

2. सूअर का- इसीलिए जर्सी गाय का दूध पीने से मानव के अन्दर नास्तिक बुद्धि का विकास होने लगता है।

3. भैंसे का- इसीलिए जर्सी गाय का दूध पीने से मानव के अन्दर अति कामना, वासना और भोग की प्रवृत्ति उत्पन्न होने लगती है।

इसके साथ ब्रेन टयमर. लकवा. फालिस. बाँझपन.नपुंसकता जैसे- भयानक रोग होते हैं। इस प्रकार जर्सी गाय का दूध सफेद पानी और धीमा जहर होता है। इस पशु अन्दर जो डी.एन.ए. है, वह मानवीय गुण धर्म के विपरीत है इसलिए जर्सी गाय का पालन करना उसके दूध, दही, आदि का सेवन करना हानिकारक है।

दोगली गाय – वर्तमान समय में गौ सेवा के क्षेत्र में अर्थ को महत्व देने बाले लोगों ने, नस्ल सुधार के नाम पर जर्सी साँड़ और देशी गाय को आपस में क्रास करवाकर एक अलग से डी. एन. ए. डिफ्रेंन्स वर्णशंकर दोष यक्त दोगली गाय को उत्पन्न किया है। जिस वर्णशंकर दोष को भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कुल को नाश करने वाला महा पाप कहा है। क्योंकि जैसे पाप से गाय के कुल का समूल नाश हो जाता है। इस प्रकार यह वर्णशंकर पाप को जो मनुष्य अपने लिए अपनाता है, वह सिर्फ अपने कुल का नाश करता है। लेकिन जो व्यक्ति गाय के साथ अपनाता है, वह अपने कुल के साथ समस्त प्रकृति और मानव जाति का नाश कर देता है। क्योंकि दोगली गाय के वंश वृद्धि के साथ उसके द्रव्य पदार्थ दूध, दही घी. गोबर और गौमत्र का सभी लोग उपयोग करते हैं। उन सभी को वह वर्णशंकर दोष प्रभावित करता है। वर्णशंकर दोष के अन्तर्गत धर्म शास्त्र में यहाँ तक कहा गया है स्वदेशी गाय में भी पाई जाने वाली अलग-अलग नस्ल को एक दूसरे के साथ आपस में सम्पर्क नहीं करबाना चाहिए। क्योंकि उससे उसके वास्तविक कुल का नाश हो जाता है ।

इस प्रकार नस्ल सुधार के नाम पर गाय के नस्ल को अधिक बिगाढ़ दिया गया। जिस दोगली गाय का दूध पीने से मनुष्य के अन्दर नास्तिक बुद्धि का विकास होता है। इसीलिए – गाय का नस्ल बिगाढ़ना पाप है। जो पाप आगे चलकर सामूहिक रूप से सभी मानव जाति को प्रभावित करता है।

3. स्वदेशी गाय और उसकी महिमा – भारत में कुल छः ऋतु है, जो विश्व के अन्य किसी देश में नहीं पाया जाता है, जिस ऋतु प्रभाव के कारण भारत की भूमि आध्यात्मिक भूमि कहलाती है। यहाँ की मिट्टी और फलों में विशेष रूप से सुगन्ध होता है। अन्न और फलों में विशेष स्वाद होता है। आयुर्वेद में विशेष रूप से प्राण होता है। जिस छः ऋतु प्रभाव के कारण यहाँ के लोग धर्म परायण, प्रकृति परायण और अहिंसावादी होते हैं। जिस छः ऋतु प्रभाव के कारण यहाँ की गाय संसार की अन्य गायों से भिन्न होती है तथा उसके अन्दर विशेष दिव्य गुण होता है। उसके द्रव्य पदार्थ में सात्विक गुण और सात्विक सुगन्ध होता है। उसके शरीर की आकृति और बनावट संसार के अन्य गायों से भिन्न होती है। उसके कंधे पर ऊपर की ओर उठा हुआ गोल थुम्मा यानि डिल्ला होता है। जिसके अन्दर सूर्यचक्र और सूर्यकेतु नाड़ी विद्यमान होता है। उसके गले में नीचे की ओर लटका हुआ चमड़ा गल कम्बल होता है, जो सभी नक्षत्रों का रिसीवर कहलाता है। सामने दोनों पाँव के बीच में नीचे की और लटका हुआ गोल थुम्मा होता है, जो चन्द्र नाड़ी का उद्गम स्थल कहलाता है। यह सभी दिव्य अंग और दिव्य गण छ: ऋत प्रभाव के कारण यहाँ की गायों में पाई जाती है। इसीलिए उसे भारतीय संस्कृति में माता का स्थान प्राप्त है। जिसके शरीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास है। जिसके दूध, दही, घी, गोबर, गौमत्र को परम पवित्र और देवताओं का दिव्य प्रसाद माना जाता है। आयुर्वेद शास्त्र में उसके द्रव्य पदार्थ को दिव्य औषधि और अमृत कहा गया है। गौमाता अपने इन्हीं दिव्य गुणों के कारण परम पूज्यनीय है। इनके अन्दर प्राणबल और सतोगुण की शक्ति पूर्णतः विद्यमान होता है। जिसके कारण गौमाता के अन्दर दया, करूणा, ममता, वात्सल्य, प्रेम, स्नेह और त्याग वृत्ति जैसे सद्गुण विद्यमान होते हैं। इसीलिए भारतीय गौ वंश को दिव्य प्राणी कहा गया है। इनका द्रव्य पदार्थ समस्त दुर्गुणों को मिटाने वाला होता है। इसीलिए स्वदेशी गाय का संरक्षण व संवर्धन भारत में विशेष रूप से किया जाता है।

भारत में स्वदेशी गाय की अनेक नस्ल पाई जाती हैं। इसीलिए जो गाय के नस्ल जहाँ पर पाई जाती हैं वह सभी गाय वहीं स्थान विशेष के लिए ज्यादा उपयुक्त होती हैं।

भारत में कुल छः ऋतु हैं, जिस ऋतु प्रभाव के कारण यहाँ के भोगौलिक वातावरण का प्रभाव भी स्थान विशेष के अनुसार अलग-अलग होता है। इसीलिए परमात्मा ने उस अलग-अलग भौगोलिक वातावरण के अनुसार गाय के भी अनेक नस्ल बनाया है। जो स्थान विशेष के अनुसार वहाँ की मिट्टी-पानी, हवा, वनस्पति, धरती और मानव जीवन के लिए जो तत्व चाहिए वह सभी तत्व वहाँ के स्थानीय गाय अपने द्रव्य पदार्थ के द्वारा विशेष रूप से उत्सर्ग करती है। इसीलिए स्थानीय गौ वंश का स्थानीय जलवायु के अनुसार विशेष महत्व होता है।जैसे- नागपुर का सन्तरा, भुसावल का केला, कोकण का आम, नासिक का अंगूर, कश्मीर का सेब, मुजफ्फरपुर की लीची, इलाहाबाद का अमरूद, केरल का नारियल ये सभी उसी भूमि में ज्यादा उपयुक्त, मीठा और स्वादिष्ट होता है।

उसी तरह गाय के भी जो नस्ल जहाँ पर पायी जाती है। वह सभी नस्ल वहाँ के लिए ज्यादा उपयुक्त होती है।  इसीलिए गाय के स्थानीय नस्ल का ज्यादा से ज्यादा विकास और संरक्षण व संर्वधन करना चाहिए।

भारत की भूमि और गाय को माता क्यों कहते हैं?

भारत को छोड़कर पश्चिम के अन्य सभी देशों में 2 या 3 ऋतु मात्र होती हैं । इसीलिए वहाँ की भूमि भोग भूमि कहलाती है। वहाँ के अन्न में कोई स्वाद नहीं होता है। फलों में कोई मिठास नहीं होती है। फूलों में कोई सुगन्ध नहीं होता है। वहाँ के वनस्पति में कोई आयुर्वेदिक गुण नहीं होता है। वहाँ गाय नाम का कोई प्राणी नहीं होती है।

उसके वनिस्पत भारत के मिट्टी में सुगन्ध और खुशबू होती है। अर्थात इस मिट्टी से जो कुछ भी पैदा होता है। उसके अन्दर सुगन्ध और खुशबू होता है। इसीलिए इस मिट्टी का तिलक अपने माथे पर लगाया जाता है।

इसी तरह गाय नाम के प्राणी का प्रथम उत्पत्ति भारत में ही हुआ है। जिसके अन्दर सात्विक गुण और उसके द्रव्य पदार्थ दूध में सात्विक सुगन्ध होती है। इन दोनों के आधार से ही यहाँ की भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है।

इसीलिए भारत की भूमि और यहाँ की गाय इन दोनों को माता मानकर पूजा और सम्मान किया जाता है।

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