अम्मा
Home [gtranslate] अम्मा Anshu Dubey October 8, 2021 No Comments माँ नोवेम्बर 1938 – अगस्त 2020 अम्मा चली गयीं। उनकी आत्मा अब दिवंगत हो गई। ईश्वर की शरण में है। जीवन चक्र का एक वृत्त पूर्ण हुआ। ये अच्छी तरह पता है, लेकिन माँ का रूप तो वही देखा जाना, जो इस जीवनमें था। आत्मा की यात्रा की जानकारी उनके अब अचानक से न होने दुख, ख़ालीपन, कष्ट और अवसाद को कम नहीं कर पा रही। धीरे धीरे उनके जाने के दिन के एक-एक दिन पीछे होते जाने से ये अनुभव स्मृति में परिवर्तित होना आरंभ हुआ है पर यही जीवन भर की स्मृतियाँ एक विद्युत तरंग की तरह आती हैं और हाथ पैर सुन्न कर जाती हैं, एक ही जगह पर जड़ खड़े कर जाती हैं। ईश्वर की कृपा से आपस में प्रेम से जुड़े घर परिवार की ‘जगत मामी’ ने प्रत्येक व्यक्ति जीवन को छुआ है। कोरोना के समय में भी जो अपने को उनके अंतिम दर्शन लेने से नहीं रोक पाए, उन सभी व्यक्तियों में एक भी, एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं था जिसने उनसे कुछ सीखा ना हो, उनके हाथ का बना कुछ फ़ेवरेट खाया हो या उनके हाथ से बना कुछ पहना न हो। अनगिनत स्मृतियाँ..सबकी.. कोई शोक के आता है तो कभी बात कर पाती हूँ, कभी नहीं कर पाती। लगा था, लिख कर मन का सार शब्दों में आ पाएगा। पर यह असीम ईश्वर का अंश, जिसे हम माँ के रूप में जानते हैं, शब्दों से बहुत परे है। कितने रूप मन में, मस्तिष्क में एक साथ घूम रहे हैं। वो वाली अम्मा, जिसकी पहली लिखाई उनकी काली डायरी में देखी जो वो बच्चों की तोते भाई वाली कविता थी, या वो वाली जिनकी आख़िरी लिखाई स्वस्तिक के आकार में लिखा राम-नाम था। वो वाली माँ जो एकता कपूर के अधिकतर धारावाहिक बड़े रस से देखती थीं, या वो वाली जो एक बार में विस्तृत श्रीमद्भागवतम पढ़ गईं थीं। वो वाली माँ जो हाथ के पंखे, झाड़ू से पिटाई करती थीं, या वो वाली माँ जिसने अपनी बेटी की नाक इसलिए नहीं छिदाई थी क्योंकि उससे दर्द बहुत होता है। वो वाली माँ जो सारे स्कूल जीवन में बेटी को अकेले पैदल आने-जाने की आदत डालती थीं या वो वाली जो ऑफ़िस की कैब से भी घर पहुँचने तक गेट पर ही टहलती रहती थीं। वो वाली माँ जो परिवार की सभी बहुओं को सूने हाथ रखने पर बहुत डाँटती थीं, या वो वाली जो पापा के जाने के बाद कभी पिक्चर देखने हॉल में नहीं गयीं। वो वाली माँ जिसे सारा जीवन स्वावलंबी व दौड़ता फिरता देखा, जिन्हें नानाजी उनसे 8 साल बड़े मामाजी के पीछे भगाते थे, या वो वाली जो ICU की मशीनों के तारों, अपने अंदर गयीं नलियों में घिरी, धीरे धीरे शारीरिक कष्ट से अचेतन होती इसलिए भावशून्य मुख लिए थी कि उनके चेहरे पर कष्ट देखकर उनके बेटे को असह्य कष्ट हो रहा था। वो वाली माँ जिसकी कभी कभी चिंता होती थी कि कैसे अपनी गृहस्थी का,पुत्र का मोह छोड़ सकेंगी, या वो वाली जिन्होंने तीन दिन में अपनी जिजीविषा समेट ली और वेंटिलेटर पर भी अपनी हृदय गति रोक कर, बाहर के बल से एक श्वास भी स्वीकार नहीं करी। उनके जाने के दुःख को बता नहीं सकती लेकिन अम्बे माँ ने उन्हें अपनी शरण में लिया और उनका ध्यान करने पर गले तक भरी हुई संतुष्टि का आभास देकर जो ममता भरी सांत्वना दी, वही आगे जीवन का संबल है। सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥