मन ही सार है..

मनुष्य तत्व के अंतर्गत ‘मन’ ही सार वस्तु है। इसी औज़ार के सहारे वह छोटे बड़े कार्यों का सम्पादन करता है, पाप-पुण्य, उन्नति-अवनति, सफलता-असफलता, स्वर्ग-नरक की रचना करता है। जिस औज़ार के ऊपर सारा सुख दुख निर्भर है, उसका ठीक प्रकार से प्रयोग करना हर एक व्यक्ति को आना चाहिए।

परंतु कितने लोग हैं जो अपने मन की शक्तियों का उपयोग करना जानते हैं? बंदर के हाथ में तलवार हो, घोड़े की दम से राज सिंहासन बंधा हो तो वे दोनों पशु उससे कुछ लाभ न उठा सकेंगे वरन उलटे आपदा में मुसीबत में फंस जाएंगे। जिसे बंदूक के कल-पुर्जों का ज्ञान न हो, चलाना न आता हो, वह गोली बारूद सहित बढ़िया राइफल या मशीनगन लिए फिरे तो उससे लाभ तो कुछ नहीं उठाएगा और यदि कुछ भूल हुई तो उलटे मुसीबत में पड़ जाएगा। अनेक मनुष्यों को हम विभिन्न प्रकार की आपत्तियों, कठिनाइयों और वेदनाओं से व्यथित देखते हैं। इनमें से अधिकांश कष्ट उनके अपने पैदा किए हुए और काल्पनिक होते हैं। इन दुखों का सारा कारण मन का कुसंस्कारी हो है। यदि मन रूपी औज़ार को लोग ठीक प्रकार से प्रयोग करना जानते और प्रयोग कर सकते तो दुनिया के आधे से अधिक कष्टों का अपने आप अंत हो जाता।

मन के ऊपर ठीक प्रकार का नियंत्रण पाने और उसे इच्छा के अनुसार उपयोग कर सकने की कला हस्तगत करने का उपाय और विधि भारतीय ज्ञान विधा (Indian Knowledge Systems) में योग के रूप में बताई गई है। हम उसे मूल रूप से समझ, पारंपरिक रूप से विधिवत सीख सकते हैं क्योंकि भारत में जन्मे होने से हमें ये सहजता से और चारों ओर उपलब्ध है। योग का उदेश्य मन को ऐसा लचकदार बनाना है कि उसे जिधर भी लगाना चाहें इच्छानुसार लगा सकें।

अष्टांग योग के आठ अंग हैं – यम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। सीधे ध्यान (meditation) पर कूद पड़ने से अथवा उसे शॉर्ट कट समझकर अभ्यास करने का प्रयास करने से यात्रा बहुत लंबी हो जाएगी। #मनन

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः। मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।

भगवद्गीता ३.४२

इन्द्रियोंको (स्थूलशरीरसे) पर (श्रेष्ठ, सबल, प्रकाशक, व्यापक तथा सूक्ष्म) कहते हैं। इन्द्रियोंसे पर मन है, मनसे भी पर बुद्धि है औऱ जो बुद्धिसे भी पर है, वह (काम) है।

Author: Brahm Varchas

I am here to share my journey from the regular run of the mill life to reach Brahm Varchas - the pinnacle of knowledge and existence !

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