गर्भ विज्ञान

मानव जीवन के विकास के तीन सोपान होते हैं - पहला गर्भावस्था, दूसरा बाल्यावस्था तथा तीसरा युवावस्था। इन तीनों अवस्थाओं में से मानव का सर्वाधिक विकास गर्भावस्था में होता है। अतः गर्भावस्था सबसे अधिक ध्यान देने योग्य अवस्था है। शिशु के विशेष संगोपन का आरम्भ वास्तविकता में गर्भावस्था पूर्व ही हो जाता है। इसी गर्भावस्था पूर्व से आरम्भ होने वाले और प्रसूताचर्या (postnatal care) तक प्रयोग होने वाले वैज्ञानिक ज्ञान को संक्षिप्त में ‘गर्भविज्ञान’ कहते हैं। गर्भविज्ञान में गर्भपूर्व चर्या, गर्भावस्था चर्या तथा प्रसूति समय की सावधानी एवं नवजात शिशु तथा प्रसूता दोनों की चर्या के नियमों का समावेश होता है। भारत में वैदिक साहित्य तथा सभी प्रकार के ग्रंथों में, विशेषकर आयुर्वेद में, गर्भविज्ञान के विषय में विस्तृत चर्चा करी गयी है और सभी समाधान उपलब्ध हैं। गर्भ विज्ञान की पूरी जानकारी, गर्भवती स्त्री और शिशु के लिए आहार-विहार-चर्या-औषधि-संस्कार और सभी आयामों को पूर्ण रूप से जानने और सीखने के लिए यहाँ विभिन्न पाठ्यक्रम उपलब्ध होंगे।

which Pujya Vishwanath Guruji recorded in an experimental & practical form for modern times through years of penance and revision.

The all-round Indian knowledge of the upbringing of children from birth to adulthood lies  at the core of the ideal family system that has sustained Bhartiya civilization & society for over 10,000 years.

Vedic parenting is the science and art of teaching parents to behave appropriately towards their children with proper examples.

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गर्भ विज्ञान (एन्साइक्लोपीडीया)

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